एक रात अचानक से कोई मुझे सोते से उठाने लगा। सामने देखा तो मेरी तन्हाई खड़ी मुस्कुरा रही थी। मैंने गुस्से से उसकी तरफ देखा और पूछा, 'क्या हुआ! तुम फिर क्यों आ गयी आज। उसने मासूमियत से मेरी तरफ देखा और बोली , 'मै क्या करती, मै आज तनहा थी, सोचा तुमसे तन्हाई बाँटने चली आऊँ।' ये कह कर वो हँस पड़ी और फिर मै भी हँस पड़ा। मैंने उसे बुलाया अपने पास बैठाया और उसकी खुबसूरत चहरे को निहारता रहा। वो शर्मा कर बोली, ' ऐसे क्या देख रहे हो आज, क्या मै अब तक नही थी तुम्हारे पास।' मैंने कहा, ' तुममे है सब कुछ खास, यादें होती है मेरे पास। ' वो मुस्कुराती, इठलाती, बलखाती चली और थोड़ी दूर जा कर बोली, ' गुस्से से घूरा था तुने मुझे,अब न आउंगी कभी मिलने तुझे। ' मैंने प्यार से उसे देखा फिर आवाज़ देकर अपने पास बुलाया, 'प्यार में तकरार तो अच्छी है , पर कभी न मिलने की ये हसरत कैसी है?' उसने शरारत भरी नज़रो से मुझे देखा और एक टक मुझे देखती हुई धीरे से बोली, ' कल मै आउंगी और खोलूंगी यादों की किताब, दिखाउंगी तुम्हे यादों के सुनहरे-फीके महताब। ' अचानक मेरी आँख खुली और खुद को ज़मीन पर पड़ा पाया। तो मन् में सिर्फ यही बुदबुदाया, ' तन्हाई है इतनी दिलचस्प अगर, तो इससे कोई शिकवा नही हमें। दोस्ती कर लिया जब तुमने हमसे, तब ये दोस्ती निभायेंगे हम भी तुमसे।'
कौस्तुभ 'मनु'
बहुत सुन्दर , गद्य रूपी पद्य है ...
ReplyDeletetanhai se dosti sundar hai....
ReplyDeletesolitude can be used in dexterous ways!
well written poetically!
kai insan ki halat hai ase par koi banya nahi karte.
ReplyDeletewonderfully written
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ... आपके लिए और परिवार के समस्त सदस्यों के लिए ...
ReplyDeleteदीवाली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteMann hai, samvedana kahan ?
ReplyDeleteYadoan ke sath ayengi ? Aur aaj, uska satya ?
Sorry, Kaustubh, for being direct. Your talent has enormous potential. Just what you seek to say, express, ought to be more defined and detailed. Which, I am sure you'd appreciate, precedes writing, even before we lift the pen.
These are my projections, with love.