Saturday, April 19, 2014

यादों संग आंखमिचौली

ये यादें  कभी कभी हमें बियाबाँ दिल की तलहटी में लें जाती हैं, तो  कभी जुबां पर मुस्कराहट ले आती है. इन यादों को अक्सर असमंजस से  देखता हूँ कि कैसे अचानक से सामने आकर खड़ी हो जाती हैं. मैं इन्हे ध्यान नहीं देता हूँ पर फिर भी टकटकी लगाये मुझे देखती रहती  है। मैं  भी  जुंजुला कर  कभी कभी  पूछ बैठता हूँ, "क्युँ जी! तुम्हे कोई और काम-वाम नहीं है क्या? जब देखो आ जाती हो मुझे सताने और रूलाने को।  जब भी देखती हो मुझे तुम घर में अकेला, झटपट  अंदर को चली आती हो. कहे देते है आज साफ़ साफ़ तुमसे, या तो तुम नहीं, या फ़िर हम नहीं। मैं पूछूँगा उससे क्युँ मिलाया उसने मुझे तुमसे। शुरुआत में तुम होंठो पर मुस्कराहट ले आती थी, पर अब दिल में चुभन और आँखों में नमी दे जाती हो।  मैंने सोचा था कि तुम्हें एक बार भी मुड़ नहीं देखूँगा पर तुम  हर बार सामने आकर खड़ी हो जाती हों." मैंने याद को ग़ुस्से से घूर कर देखता हूँ मग़र वो मुस्कराहट के साथ मेरा हाथ थामें चलती है। मैं भागता हूँ  हाँथ छुड़ा कर भीड़ में गुम हो जाने को पर तुम फ़िर भी सरपट मेरे पीछे दौड़ आती हो। इस रोज़ की कसमकश से; कि न मैं तुझसे पीछा छुड़ा पाउँगा औऱ न ही तुम मेरा साथ छोड़ोगी। ये वादा है आज़ 'मनु' का तुझसे कि एक़ रोज़ तुझसे इतना दूर निकल जाउंगा कि न तू रहेगी ना तेरी जुस्तजू।


 कौस्तुभ 'मनु'

Friday, February 1, 2013

ख्याल-ए-इश्क़


टूटे सपनों को जोड़ने की आदत अब भी है,
भूली  यादों को याद करने की आदत अब भी है।

तेरे संग बिताये लम्हों को आज़माना अब भी है,
तेरे होठों पर मुस्कुराहट लाना अब भी है।

तेरे संग दो कदम चलने की हसरत अब भी है,
तेरे आसुओं को मुट्ठी में बांधने की हसरत अब भी है।

तेरी निगाहों में डूब जाने की चाहत अब भी है,
तेरे दिल में जगह बनाने की गुज़ारिश अब भी है।

तेरे साथ हुल्लड़ करने का बचपना अब भी है,
तेरे संग कुछ पल बिताना अब भी है।

तेरे संग सुबह की ओस की बूंदों को समेटना अब भी है,
तेरे साथ रात की चांदिनी को निहारना अब भी है।

तेरे संग कुछ सवालों के जवाब ढूँढना अब भी है,
तेरे साथ कुछ शरारते करनी अब भी है।

तेरी सोच के दायरों का ख़याल अब भी है,
'मनु' को अपनी वफ़ा पर ऐतबार अब भी है।

तू बाहों में सिमटने को बेताब अब भी है,
मेरी इबादत में तेरा ज़िक्र अब भी है।

कौस्तुभ 'मनु'

Tuesday, November 6, 2012

नकाब

नकाब में दिखता है आज हर एक शक्स,

दिखता है हर किसी की आँखों में खुदगर्जी का अक्स।

पूछता जब भी 'मनु' इनसे इनका सच,

निकल जाते निगाहें बचा कर सब।

कौस्तुभ 'मनु'