एक रात अचानक से कोई मुझे सोते से उठाने लगा। सामने देखा तो मेरी तन्हाई खड़ी मुस्कुरा रही थी। मैंने गुस्से से उसकी तरफ देखा और पूछा, 'क्या हुआ! तुम फिर क्यों आ गयी आज। उसने मासूमियत से मेरी तरफ देखा और बोली , 'मै क्या करती, मै आज तनहा थी, सोचा तुमसे तन्हाई बाँटने चली आऊँ।' ये कह कर वो हँस पड़ी और फिर मै भी हँस पड़ा। मैंने उसे बुलाया अपने पास बैठाया और उसकी खुबसूरत चहरे को निहारता रहा। वो शर्मा कर बोली, ' ऐसे क्या देख रहे हो आज, क्या मै अब तक नही थी तुम्हारे पास।' मैंने कहा, ' तुममे है सब कुछ खास, यादें होती है मेरे पास। ' वो मुस्कुराती, इठलाती, बलखाती चली और थोड़ी दूर जा कर बोली, ' गुस्से से घूरा था तुने मुझे,अब न आउंगी कभी मिलने तुझे। ' मैंने प्यार से उसे देखा फिर आवाज़ देकर अपने पास बुलाया, 'प्यार में तकरार तो अच्छी है , पर कभी न मिलने की ये हसरत कैसी है?' उसने शरारत भरी नज़रो से मुझे देखा और एक टक मुझे देखती हुई धीरे से बोली, ' कल मै आउंगी और खोलूंगी यादों की किताब, दिखाउंगी तुम्हे यादों के सुनहरे-फीके महताब। ' अचानक मेरी आँख खुली और खुद को ज़मीन पर पड़ा पाया। तो मन् में सिर्फ यही बुदबुदाया, ' तन्हाई है इतनी दिलचस्प अगर, तो इससे कोई शिकवा नही हमें। दोस्ती कर लिया जब तुमने हमसे, तब ये दोस्ती निभायेंगे हम भी तुमसे।'
कौस्तुभ 'मनु'
Wednesday, October 27, 2010
Tuesday, October 26, 2010
ऊपर वाले
मै भिखारी हूँ थोड़ी दुआ माँगने आया हूँ,
मै मुजरिम हूँ अपना गुनाह कबूल करने आया हूँ।
एक अँधा हूँ रौशनी माँगने आया हूँ,
बदसूरती में नूर माँगने आया हूँ।
इस्तकबाल ऊपर वाले मालिक का करता हूँ,
जो मै हमेशा उसके दर पर आता हूँ।
अजीब रहमत है उसकी इबादत में,
वो तो है अब हम सब के दिलों में।
कभी खुदा बोल उठते है,
तो कभी भगवन का नाम देते है।
कभी मंदिर में पूजा करते है,
तो कभी मस्जिद में सजदा करते है।
बोला 'मनु' अब कहा मै मंदिर-मस्जिद को खोजू,
जब बसते अल्लाह और भगवान् हम सब में है।
थोडा खुद को खोजो फिर से दुबारा,
वरना हमेशा खुद को पवित्र और पाक करते रह जाना है।
कौस्तुभ 'मनु'
मै मुजरिम हूँ अपना गुनाह कबूल करने आया हूँ।
एक अँधा हूँ रौशनी माँगने आया हूँ,
बदसूरती में नूर माँगने आया हूँ।
इस्तकबाल ऊपर वाले मालिक का करता हूँ,
जो मै हमेशा उसके दर पर आता हूँ।
अजीब रहमत है उसकी इबादत में,
वो तो है अब हम सब के दिलों में।
कभी खुदा बोल उठते है,
तो कभी भगवन का नाम देते है।
कभी मंदिर में पूजा करते है,
तो कभी मस्जिद में सजदा करते है।
बोला 'मनु' अब कहा मै मंदिर-मस्जिद को खोजू,
जब बसते अल्लाह और भगवान् हम सब में है।
थोडा खुद को खोजो फिर से दुबारा,
वरना हमेशा खुद को पवित्र और पाक करते रह जाना है।
कौस्तुभ 'मनु'
Monday, October 25, 2010
यादे अनकही
दिल के दरख्तों में कुछ राज है छुपे,
सोचा अब इन्हे खोल कर सामने रख दूं तेरे।
अचानक तेरा मुस्कुराता हुआ चहरा जो आया याद,
सोचा इस मुस्कुराते चहरे को ज़िन्दगी से दूर कैसे कर दूं।
कल जब कभी इत्तिफाकन खुलेगा पर्दा,
तब शायद आये याद हमारी।
इतना तो है यकीन खुद पर हमे,
हमेशा बसी रहेगी याद तुम्हारी ।
कभी गलती से ही सही याद करोगी जब हमे ,
एक हल्की ही सही पर मुस्कराहट तो दे ही जायेंगे तुम्हे ।
तब हो जाऊँगा मर के भी जिंदा मै,
रूमानियत से याद करेगी जब रूही हमे ।
कौस्तुभ 'मनु'
सोचा अब इन्हे खोल कर सामने रख दूं तेरे।
अचानक तेरा मुस्कुराता हुआ चहरा जो आया याद,
सोचा इस मुस्कुराते चहरे को ज़िन्दगी से दूर कैसे कर दूं।
कल जब कभी इत्तिफाकन खुलेगा पर्दा,
तब शायद आये याद हमारी।
इतना तो है यकीन खुद पर हमे,
हमेशा बसी रहेगी याद तुम्हारी ।
कभी गलती से ही सही याद करोगी जब हमे ,
एक हल्की ही सही पर मुस्कराहट तो दे ही जायेंगे तुम्हे ।
तब हो जाऊँगा मर के भी जिंदा मै,
रूमानियत से याद करेगी जब रूही हमे ।
कौस्तुभ 'मनु'
Friday, October 22, 2010
दुबारा सोचिये !
देते है दंश माँ को बार - बार,
फिर भी नही होते शर्म से तार - तार ।
करते है आह्वाहन मंदिर- मस्जिद बनवाने का,
अब करो आह्वाहन एक नयी 'सोच' बनाने का।
विभिन्न मुद्दों पर जब तर्क- वितर्क है करते,
फिर भी संवेदनशीलता - ह्रास का व्यंग है कसते।
सोचते है सब सिर्फ अपने बारे में अगर,
फिर दूसरों से जलन कैसे हो जाती है।
कहते है कलयुग इसे फिर ,
लोगों में मोहब्बत कैसे हो जाती है।
मानवता विहीन नही कह सकते,
बस एक 'विचारधारा' की कमी समझ है सकते।
अपराधी तो हमेशा किसी न किसी के रहेंगे हम,
बस कम से कम यह ही सोच के चलो कि आज से अपराध करेंगे कम।
कौस्तुभ 'मनु'
फिर भी नही होते शर्म से तार - तार ।
करते है आह्वाहन मंदिर- मस्जिद बनवाने का,
अब करो आह्वाहन एक नयी 'सोच' बनाने का।
विभिन्न मुद्दों पर जब तर्क- वितर्क है करते,
फिर भी संवेदनशीलता - ह्रास का व्यंग है कसते।
सोचते है सब सिर्फ अपने बारे में अगर,
फिर दूसरों से जलन कैसे हो जाती है।
कहते है कलयुग इसे फिर ,
लोगों में मोहब्बत कैसे हो जाती है।
मानवता विहीन नही कह सकते,
बस एक 'विचारधारा' की कमी समझ है सकते।
अपराधी तो हमेशा किसी न किसी के रहेंगे हम,
बस कम से कम यह ही सोच के चलो कि आज से अपराध करेंगे कम।
कौस्तुभ 'मनु'
Tuesday, October 19, 2010
प्यारा जहानं
ढालों अब अपनी ज़िन्दगी को ऐसे साचे में,
खुशिया हो बेमिशाल जिसमे ।
न चुभे कांटे जिसमे,
न रूबरू हो गुम से जिसमे।
क्यों काटोगे ज़िन्दगी नफरत में,
जब प्यार हो ज़हान में हर तरफ'
कौस्तुभ 'मनु'
खुशिया हो बेमिशाल जिसमे ।
न चुभे कांटे जिसमे,
न रूबरू हो गुम से जिसमे।
क्यों काटोगे ज़िन्दगी नफरत में,
जब प्यार हो ज़हान में हर तरफ'
कौस्तुभ 'मनु'
Wednesday, October 13, 2010
बोझिल
ये दहकते अंगारे क्यों है,
ये खून के फवारे क्यों है.
ये हर तरफ आतंक क्यों है,
रोते बिलखते बच्चे क्यों है.
अट्टहास करते नेता क्यों है,
आम आदमी खामोश खड़ा क्यों है.
कभी न शांत होती महंगाई क्यों है,
हर दूसरा आदमी गुस्से में क्यों है.
कौस्तुभ 'मनु'
ये खून के फवारे क्यों है.
ये हर तरफ आतंक क्यों है,
रोते बिलखते बच्चे क्यों है.
अट्टहास करते नेता क्यों है,
आम आदमी खामोश खड़ा क्यों है.
कभी न शांत होती महंगाई क्यों है,
हर दूसरा आदमी गुस्से में क्यों है.
कौस्तुभ 'मनु'
Sunday, October 10, 2010
आस पास
इतना भला मत सोचो कि घुटन से मर जाऊं ,
इतना प्यार मत करो कि पिघल कर मिट जाऊं.
बस साथ ही काफी है सब का,
बाकी उड़ान तो मै भर ही लूँगा ऊँचे नीले गगन का .
इतना भी क्या सोचना साथ देने में,
हम सभी तो है अकेले इस ज़िन्दगी के मेले में.
दूसरो से जलने में क्या रखा है,
धूर्तपना छोड़ दो और
दिल से देखो तो हर प्यार ही सच्चा है .
कोई भूतकालीन बात नहीं करता,
बस मन् की ताजगी की बात हूँ करता.
जब चाँद सितारे तोड़ने की बात करते हो,
तो ये बात मानने से क्यों डरते हो !
या तो तब तुम झूठे बन बैठे थे ,
या अब तुम कच्चे बन बैठे हो .
तब जब सच्चे बनने से नही डरे थे,
तो अब क्यों पक्के बनने से कतराते हो.
कौस्तुभ 'मनु'
इतना प्यार मत करो कि पिघल कर मिट जाऊं.
बस साथ ही काफी है सब का,
बाकी उड़ान तो मै भर ही लूँगा ऊँचे नीले गगन का .
इतना भी क्या सोचना साथ देने में,
हम सभी तो है अकेले इस ज़िन्दगी के मेले में.
दूसरो से जलने में क्या रखा है,
धूर्तपना छोड़ दो और
दिल से देखो तो हर प्यार ही सच्चा है .
कोई भूतकालीन बात नहीं करता,
बस मन् की ताजगी की बात हूँ करता.
जब चाँद सितारे तोड़ने की बात करते हो,
तो ये बात मानने से क्यों डरते हो !
या तो तब तुम झूठे बन बैठे थे ,
या अब तुम कच्चे बन बैठे हो .
तब जब सच्चे बनने से नही डरे थे,
तो अब क्यों पक्के बनने से कतराते हो.
कौस्तुभ 'मनु'
Saturday, October 9, 2010
ज़िन्दगी
बोले 'मनु' दिल में रखो या धड़कन में,
रहना तो है मुझे आप सभी की यादों में.
अगर कबूल करो तो प्यार में ज़िन्दगी लुटा दूं,
अगर ना कहो तोह ज़िन्दगी में प्यार लुटा दूं.
कौस्तुभ 'मनु'
रहना तो है मुझे आप सभी की यादों में.
अगर कबूल करो तो प्यार में ज़िन्दगी लुटा दूं,
अगर ना कहो तोह ज़िन्दगी में प्यार लुटा दूं.
कौस्तुभ 'मनु'
नास्तिक
नास्तिक हूँ नही बस मेरा कर्म ही धर्म है मेरा,
राही हूँ दूर देश का चलना है बस काम मेरा.
कुछ पल का साथ है मेरा,
फिर दूर चले जाना है है मुझे.
फिर क्यूँ न बताऊँ दिल का हाल तुझे.
राही हूँ दूर देश का चलना है बस काम मेरा.
कुछ पल का साथ है मेरा,
फिर दूर चले जाना है है मुझे.
फिर क्यूँ न बताऊँ दिल का हाल तुझे.
Thursday, October 7, 2010
बशिंदगी
बाशिंदा हूँ तो कम से कम जिन्दा तो हूँ
और जिंदा हूँ एस लिए दिल की सुनता तोह हूँ.
वरना देखे है जिंदा खड़े मरे इंसान हमने,
पूछो दिल का हाल तो साप सूंघ जाता है जिन्हें!
- कौस्तुभ 'मनु'
और जिंदा हूँ एस लिए दिल की सुनता तोह हूँ.
वरना देखे है जिंदा खड़े मरे इंसान हमने,
पूछो दिल का हाल तो साप सूंघ जाता है जिन्हें!
- कौस्तुभ 'मनु'
कुछ अनकही
मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही, पर आग तो जलनी चाहिए !
जितना हम तडपे है, उतना कोई और भी तड़पना चाहिए.
ये कोई बदला नहीं, बस दिल की हसरत है .
कोई व्यंग नही, बस विचारों की कसरत है
ढूढता है दिल अक्सर, उससे मिलने का बहाना,
बस कदम साथ नही देते, जिस रास्ते को है जाना.
हर मुस्कुराहट को दिल में कैद करना,
फिर घंटो उन यादो में खो जाना.
वजूद अब खोने सा लगा है,
दिल फिर रोने को हो चला है .
दिल कहता है 'मनु' तू रोता क्यों,
दिमाग कहता 'मनु' तू मरता क्यों है.
दिल बोलता चल खुश हो की वो खुश है,
दिमाग बोलता चल चल खुश हो की वो दूर है.
इतमिनान करो दिल को आराम दो,
क्यूंकि ये ज़िन्दगी है ज़ीने के लिए ,
खुशिया बाटोंगे तो ज़िन्दगी बेहतरीन होगी,
वरना मौत से पहले ही मौत होगी.
कौस्तुभ 'मनु'
जितना हम तडपे है, उतना कोई और भी तड़पना चाहिए.
ये कोई बदला नहीं, बस दिल की हसरत है .
कोई व्यंग नही, बस विचारों की कसरत है
ढूढता है दिल अक्सर, उससे मिलने का बहाना,
बस कदम साथ नही देते, जिस रास्ते को है जाना.
हर मुस्कुराहट को दिल में कैद करना,
फिर घंटो उन यादो में खो जाना.
वजूद अब खोने सा लगा है,
दिल फिर रोने को हो चला है .
दिल कहता है 'मनु' तू रोता क्यों,
दिमाग कहता 'मनु' तू मरता क्यों है.
दिल बोलता चल खुश हो की वो खुश है,
दिमाग बोलता चल चल खुश हो की वो दूर है.
इतमिनान करो दिल को आराम दो,
क्यूंकि ये ज़िन्दगी है ज़ीने के लिए ,
खुशिया बाटोंगे तो ज़िन्दगी बेहतरीन होगी,
वरना मौत से पहले ही मौत होगी.
कौस्तुभ 'मनु'
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