उस कशिश की भी कुछ बात थी ,
मानो जैसे उसे सिर्फ मेरी ही आस थी .
शिकवा करते भी थे तो वो मानती थी ,
बुझे रहते थे तो वो हमे हसती थी .
उसकी कमी हमे भी हर वक़्त सताती है,
मानो जैसे हर वक़्त कुछ आसूं संग लाती है.
इंतज़ार अब सिर्फ उस लम्हे का होता है,
जब हर पल लम्हा बेबाक होता है.
कौस्तुभ 'मनु'