Monday, August 29, 2011

मैखाना

मैखाने की तलाश में चल पड़ते थे कदम अनजान राहों पर,
अब तो बन बैठा है दिल ही मेरा गम के जामों का आशियाना.

एहसास कभी जामों का हो जाता था,
अब तो एहसास का जाम भी कम पड़ जाता है.

नहीं रही याद अब कोई बाकी दिल में,
इसी लिए दिल अब मैखाने को नहीं जाता है.

फितूर जो था दिल में वो कहीं उड़न छु हो गया,
दिल का बागी परिंदा दूर कही ऊचें आकाश में खो गया.

बन जाएगा अब ये भी अब चालाक धूर्त दुनिया की तरह,
खड़े करेगा ये धक्यानुशी वैमनस्य की वजह.


कौस्तुभ 'मनु'

Tuesday, August 23, 2011

चलने को तैयार थे कदम मेरे,
धड़कन ने मगर साथ न दिया.
रुबाब था मुझे  पास होने का तेरे,
तेरी याद ने मगर फिर से तनहा कर दिया.

- कौस्तुभ 'मनु'