Friday, February 1, 2013

ख्याल-ए-इश्क़


टूटे सपनों को जोड़ने की आदत अब भी है,
भूली  यादों को याद करने की आदत अब भी है।

तेरे संग बिताये लम्हों को आज़माना अब भी है,
तेरे होठों पर मुस्कुराहट लाना अब भी है।

तेरे संग दो कदम चलने की हसरत अब भी है,
तेरे आसुओं को मुट्ठी में बांधने की हसरत अब भी है।

तेरी निगाहों में डूब जाने की चाहत अब भी है,
तेरे दिल में जगह बनाने की गुज़ारिश अब भी है।

तेरे साथ हुल्लड़ करने का बचपना अब भी है,
तेरे संग कुछ पल बिताना अब भी है।

तेरे संग सुबह की ओस की बूंदों को समेटना अब भी है,
तेरे साथ रात की चांदिनी को निहारना अब भी है।

तेरे संग कुछ सवालों के जवाब ढूँढना अब भी है,
तेरे साथ कुछ शरारते करनी अब भी है।

तेरी सोच के दायरों का ख़याल अब भी है,
'मनु' को अपनी वफ़ा पर ऐतबार अब भी है।

तू बाहों में सिमटने को बेताब अब भी है,
मेरी इबादत में तेरा ज़िक्र अब भी है।

कौस्तुभ 'मनु'