Wednesday, November 24, 2010

असमंजस की एक रात


पिछली कई रातों की तरह आज रात भी देर तक मुझे नींद नही रही है मैंने रात एक निशाचर प्राणी की तरह काटने से बेहतर छत पर जाकर पूर्णिमा की चान्दिनी का आनंद लेना बेहतर समझा थोडा टहल कर आस-पास का मुआयना करने पर ज्ञात हुआ की बगल के घर में अभी भी टीवी चल रहा है शर्माजी अपने कुत्ते को शांत कराने में लगे हुए है ये देख कर मन् को तसल्ली हुई कि सिर्फ मैं अकेला जागता प्राणी नही हूँ

टहलते हुए थोड़ी थकान लगी तो मैं दीवाल की टेक लगाकर बैठ गया और ऊपर स्वच्छ आकाश को देखने लगा तभी थोड़ी देर में मुझे आस-पास कुछ हलचल सी लगी मैंने नज़रे घुमा कर देखा तो कुछ धुंधली आकृतियाँ दिखाई देती नज़र आई मैंने मन् में खुद से कह डाला , ' मनु जी आज तो लगता है आप भी भूतो की मंडली में शामिल होने जा रहे है फिर मैंने अपनी आखें बंद की और मन् ही मन् अपने आप प्रभु राम का जाप शुरू हो गया मुझे लगा अयोध्या में जितना जाप लोग लगा दिए थे उतना तो मैं अगले कुछ मिनटों में लगा डालूँगा अगले ही पल मुझे एक अजीब से रूमानी स्पर्श का अहसास हुआ और मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी मेरी हालत उस कटे हुए बकरे की तरह थी कि जो तड़पता भी था तो डर डर के अचानक एक सुन्दर सी मधुर आवाज़ मेरे कानो में पड़ी मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की

"कौस्तुभ, क्या हुआ ? क्या तुम हमे भूल गये हो ? आँखे तो खोलो हम इतने दिंनो से तुमसे मिलना चाह रहे है और तुम हो की मिलते ही नही हो " ये कह कर वो मेरा हाथ झकझोरने लगी मैंने हिम्मत जुटाई और धीरे से आँख खोली और तपाक से बोला क्या तुम लोग भूत हो ये सुन कर वो सब एक दुसरे को देख कर मुस्कुराने लगी एक ने मुझे गाल पर हलके से चपत लगायी और हसने लगा ' भूत लोग ऐसा नहीं करते है" मैंने कहा, ' फिर कैसे करते है "? वो बोली, 'अब हमे कैसे मालूम होगा, अगर पता होता तो ज़रूर बताते " तो फिर तुम लोग हो कौन " , मैंने अचंभे से बोल बैठा इसने कहा ' अभी भी नही पहचाना '! मैंने में सर हिला दिया " ध्यान से देखो हमें, क्या कुछ समझ में रहा है" मैंने ध्यान से देखा तो पता चला की वो आकृतिया आपस में दो के समूह में जुडी हुई है जिसमे से एक थोड़ी भद्दी, थोड़ी उदास थी वही दूसरी सुन्दर थी और खुश थी मै अभी भी अनजान सा उन सब को देख रहा था एक ने धीरे से मेरे कानों के पास आकर बुदबुदाया , हम तुम्हारी यादें है जिन्हें तुम अब ध्यान नही देते
मैं हैरानी से उन सब को देखने लगा " हम सब तो तुम्हारी ज़िन्दगी का हिस्सा है हमसे दूर कैसे जा सकते हो तुम?" अचरज से मेरी आँखे खुली की खुली रह गयी

क्रमशः

कौस्तुभ शुक्ल 'मनु'

1 comment:

  1. असमंजस की रात और यादों का अनायास आना ....!
    सुंदरता से लिखा है आपने!
    यादों पर समय की धूल पड़ती जाती है पर उनका अचानक प्रकट होना बिजली चमकने की तरह तीव्रता लिए होता है...

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