Monday, September 13, 2010

हिंदी की व्यथा

हिंदी की स्वचन्द्ता आज संक्रीर्ता में बदल गयी,
इस बार फिर हिंदी सिर्फ हिंदी दिवस पर याद की गयी
बोलते है हिंदी को अपनी मातृभाषा,
फिर क्यों इंग्लिश की सलाम ठोकते जाते हो
जब जापानी आते है हमसे मिलने को तो अनुवादक ढूंढ़ कर लाते है,
तो फिर तुम अपनी मात्रभाषा क्यों भूलते जाते हो
संस्कृत तो अब इतिहास बन गयी ,
अब क्या हिंदी को तुम पाशाढ़ बनाना चाहते हो
बनते विद्वान अगर हो ,
तो हिंदी से क्यों जी चुराते हो
हिंदी से अपनी अभद्रता दर्शाते हो,
फिर हिंदी से सब को सभ्य बन कर क्यों नही दिखलाते हो
आह्वाहन करो,
हिंदी को थोडा तो आगे बढाओगे,
कुछ ख़ास नही तो अपनो में हे हिंदी बोल कर दिखलाओगे
वरना लुप्त होती प्रजातियों की तरह,
इसे भी टीवी पर देखते पाओगे
कुछ हो सके तुमसे ,
तो कम से कम मम्मी को माँ और पापा को पिता कह कर ही देख लो.

- कौस्तुभ 'मनु'

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