मिल चुकी आज़ादी हमे, फिर क्यों त्योहारों में भीड़-भाड़ में लिकलने से घबराते हो,
अभिव्यक्ति की आज़ादी है, फिर क्यों बात करने में घबराते है |
अपनी अमीरी पर इतराते है, फिर क्यों दान करने से कतराते हो ,
विद्वान समझते खुद को है , फिर क्यों दूसरो को भटकाते हो
पहुच चुके हो चाँद तक, फिर क्यों घर से दूर रह जाते हो
सुंदर हो तुम इतने, फिर क्यों शीशे में खुद से नज़रे मिलाने से रुक जाते हो ,
करते हो प्यार किसी से, फिर क्यों मासूम जानवर को सताते हो ,
भागते हो रोज़ तेज़ सभी से, फिर क्यों घर वालो से जल्दी नही मिल पाते हो,
कठिन परीक्षा में सब सवाल हल कर देते हो, फिर इन सवालों को क्यों नही बूझ पाते हो !
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