देखता है दूर खड़ा 'मनु' ,
बैरागी कहाँ को जाता है।
सुनता सब किसी की है,
पर अपनी बात कहने से रुक जाता है।
अपने पास सब को खुश देख कर,
वो खुद पर इतराता जाता है।
देखता अचरज से हर नए रंग को वो,
पर अपनी ज़िन्दगी को रंगने से घबराता है।
बारिश की बूंदों से वो हमेशा खिल जाता है,
पर आसमान में उड़ने से वो अब भी डर जाता है।
पर अब दृढ हूँ आसमान की उचाइया छूने को,
आंसू खुद ही धुल जायेंगे उचाइयो पहुच कर।
जब सब अपने पास में होंगे,
तो खुशिया तो आ ही जायेगी ।
पर जब खुशिया हम बांटेंगे,
तो खुशिया और भी बढ़ जायेगी ।
देखता है दूर खड़ा 'मनु',
बैरागी कहाँ को जाता है।
- कौस्तुभ 'मनु'
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